प्राचीन फ़ारसी धर्म

परिभाषा

Joshua J. Mark
द्वारा, Ruby Anand द्वारा अनुवादित
11 December 2019 पर प्रकाशित
अन्य भाषाओं में उपलब्ध: अंग्रेजी, फारसी
Face Detail, Rock-Cut Tombs of Qizqapan (by Osama Shukir Muhammed Amin, Copyright)
चेहरे का विवरण, क़िज़क़ापान की चट्टान से काटी गई कब्रें
Osama Shukir Muhammed Amin (Copyright)

प्राचीन फ़ारसी धर्म एक बहुदेववादी आस्था थी जो आमतौर पर आज प्राचीन फ़ारसी पौराणिक कथाओं के रूप में जानी जाती है।यह धर्म सर्वप्रथम ग्रेटर ईरान (काकेशस, मध्य एशिया, दक्षिण एशिया और पश्चिम एशिया) नामक क्षेत्र में विकसित हुआ, लेकिन तीसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व के आसपास किसी समय पर यह उस क्षेत्र में केंद्रित हो गया जिसे अब ईरान के रूप में जाना जाता है।

इस क्षेत्र में पहले से एलामाइट्स और सुसियाना के लोग निवास कर रहे थे, जिनके विश्वासों ने बाद में फारसी धर्म के विकास को प्रभावित किया।फारसियों का आगमन एक बड़े पैमाने पर प्रवास के हिस्से के रूप में हुआ था, जिसमें कई अन्य जनजातियाँ भी शामिल थीं, जो खुद को आर्यन ( यह एक वर्ग को दर्शाती हैं, न कि एक नस्ल को और अनिवार्य रूप से जिसका अर्थ है "स्वतंत्र" या "कुलीन") कहते थे तथा इसमें एलन, बैक्ट्रियन, मेड्स, पार्थियन, सिथियन और अन्य शामिल थे।फारसी लोग एलामाइट्स के पास पर्सिस (जिसे पारसा, आधुनिक फ़ार्स भी कहा जाता है) में बस गए और यहीं से उनका नाम आया। इसके कुछ समय बाद धार्मिक अनुष्ठान शुरू हुए ।

प्रारंभिक फ़ारसी लोग अपने देवताओं की पूजा किस तरह करते थे, यह अभी अज्ञात है, सिवाय इसके कि उनकी पूजा में अग्नि और बाहरी वेदियाँ शामिल थीं। ऐसा माना जाता है कि कई मामलों में यह आधुनिक समय के जोरास्ट्रियन रीति-रिवाजों से मिलता जुलता था।अकेमेनिड फ़ारसी साम्राज्य (लगभग 550-330 ई.पू.) के शिलालेखों में राजाओं की धार्मिक मान्यताओं का उल्लेख है - जो संभवतः आरंभिक बहुदेववादी विश्वास या बाद के जोरास्ट्रियन एकेश्वरवाद रहे होंगे ।धर्म ने बाद के पार्थियन साम्राज्य (247 ई.पू.-224 ई.) में और काफी हद तक सासानी साम्राज्य (224-651 ई.) में भी केन्द्रीय भूमिका निभानी जारी रखी, जिसने जोरास्ट्रियन धर्म को राजकीय धर्म बना दिया।

जब 651 ई. में सासैनियन साम्राज्य पर आक्रमणकारी मुस्लिम अरबों ने कब्ज़ा कर लिया, तो फ़ारसी धर्म को दबा दिया गया और इस धर्म के अनुयायियों ने या तो धर्म परिवर्तन कर लिया, क्षेत्र छोड़ दिया, या गुप्त रूप से धर्म को जारी रखा। हालाँकि, धर्म परिवर्तन के प्रयासों से पारसी धर्म बच गया और आधुनिक समय में भी इसका पालन किया जा रहा है लेकिन प्रारंभिक बहुदेववादी धर्म मिथक और विद्या में बदल गया। वर्तमान समय का धर्म, जिसे बहाई धर्म के रूप में जाना जाता है तथा जिसे अक्सर "फ़ारसी धर्म" के रूप में संदर्भित किया जाता है, बाबिज़्म नामक एक इस्लामी संप्रदाय से विकसित हुआ है और इसका प्राचीन फ़ारस की धार्मिक प्रणालियों से कोई सीधा ऐतिहासिक संबंध नहीं है।

प्रारंभिक आस्था

फारसियों का बहुदेववादी विश्वास ,सकारात्मक और नकारात्मक शक्तियों के टकराव पर केंद्रित था; सकारात्मक उज्जवल शक्तियॉं जो व्यवस्था बनाए रखती हैं और नकारात्मक काली ऊर्जाएँ जो अराजकता और संघर्ष को बढ़ावा देती हैं। फ़ारसी देवताओं के समूह का अध्यक्ष अहुरा मज़्दा था, जो सब का भला करने वाला, सर्वशक्तिमान निर्माता और जीवन का पोषक था और जिसने अन्य देवताओं को जन्म दिया। अहुरा मज़्दा ने आकाश से शुरू करते हुए सात चरणों में दुनिया का निर्माण किया (हालाँकि कुछ संस्करणों में यह आकाश से नहीं पानी से शुरू हुआ)। ऐसा लगता है कि इसका उद्देश्य सार्वभौमिक सद्भाव की अभिव्यक्ति था, लेकिन अहुरा मज़्दा के ब्रह्मांडीय प्रतिद्वंद्वी अंगरा मैन्यु की दुष्ट आत्मा ने उसके इस उद्देश्य को विफल कर दिया।

सर्वोच्च अच्छाई और परम बुराई के बीच संघर्ष ही प्रारंभिक धर्म का मूल था और लगभग सभी अलौकिक सत्ताएं इन दोनों में से एक के या दूसरे के पक्ष में थीं।

आकाश पहले एक ऐसे गोले के रूप में बनाया गया जो पानी को धारण कर सकता था। फिर आकाश और पानी को एक दूसरे से धरती द्वारा अलग किया गया,जिस पर वनस्पतियाँ लगाई गई ।ऐसा हो जाने के बाद, अहुरा मज़्दा ने पहले आदिम बैल , गवेवोदता , का निर्माण किया जो इतना सुन्दर था कि अंगरा मैन्यु (जिसे अहिरमन के नाम से भी जाना जाता है) को उसे मारना पड़ा। गवेवोदता की लाश को चाँद पर ले जाया गया और उसके बीज को शुद्ध किया गया। उसकी मृत्यु के माध्यम से, उसने फिर सभी अन्य जानवरों को जन्म दिया।

फिर पहला मानव बनाया गया, गयोमार्टन (जिसे गयोमार्ड, कियुमर्स भी कहा जाता है), जो इतना सुंदर था कि अंगरा मैन्यु को उसे मारना पड़ा। उसके बीज को जमीन में सूरज की रोशनी से शुद्ध किया गया।उससे एक रबर्ब का पौधा उग आया, जो पहला नश्वर जोड़ा बना- माश्या और माश्यानाग। अहुरा माज़दा ने अपनी सांस के ज़रिए उन्हें आत्मा दी और वे एक-दूसरे और दुनिया के साथ तब तक सद्भाव में रहे जब तक कि अंगरा मैन्यु ने उन्हें फुसफुसा कर यह नहीं बता दिया कि वह उनका सच्चा निर्माता है और अहुरा माज़दा धोखेबाज़ है। जोड़े ने इस झूठ पर विश्वास कर लिया और अनुग्रह से गिर गए, जिसके बाद उनहें अव्यवस्था और संघर्ष की दुनिया में रहने के लिए छोड़ दिया गया।

वे इन परिस्थितियों में भी, अहुरा मज़्दा की सच्चाई का पालन करके और अंगरा मैन्यु के प्रलोभनों से दूर रह कर, अच्छी तरह से जीने का विकल्प चुन सकते थे। सर्वोच्च अच्छाई और परम बुराई के बीच का यह संघर्ष प्रारंभिक धर्म का हृदय था और विश्वास से जुड़ी लगभग सभी अलौकिक संस्थाएँ (जिनी और परियाँ को छोड़ कर) इनमें से एक या दूसरी तरफ गिर गईं तथा मनुष्यों को भी वही विकल्प चुनने के लिए मजबूर होना पड़ा। मृत्यु के बाद जीवन का सबसे पहला दर्शन छाया के एक अंधेरे क्षेत्र का था, जिसमें आत्मा चलती थी और जिसका अस्तित्व जीवित लोगों की प्रार्थनाओं और स्मृति पर निर्भर था; जब तक कि वह उस अंधेरी नदी को पार नहीं कर जाती , जहाँ अच्छी आत्माएँ बुरी आत्माओं से अलग हो जाती थीं।

बाद में - संभवतः ज़रथुष्ट्र से पहले लेकिन शायद उसके बाद - मृत्यु के बाद के जीवन की फिर से कल्पना की गई जिसमें चिनवत ब्रिज (जीवित और मृत के बीच का अंतराल) पर अंतिम निर्णय, जीवन में किए गए कार्यों को आकाशीय तराजू में तौला जाना तथा स्वर्ग और नरक की अवधारणा शामिल थी। यदि कोई सत्य का मार्ग चुनता है, तो वह अच्छी तरह से जीवन जीएगा और मृत्यु के बाद, गीत के घर में स्वर्ग पाएगा; यदि कोई अंगरा मैन्यु को सुनना चुनता है, तो वह ज़िंदगी में संघर्ष, भ्रम और अंधकार के साथ रहेगा और मृत्यु के बाद, उसे झूठ के घर के रूप में जाने जाने वाले नरक में फैंक दिया जाएगा।

Faravahar at Persepolis
पर्सेपोलिस में फ़रावाहर
Napishtim (CC BY-SA)

अहुरा माज़दा ने पहले जोड़े में जो आत्मा फूंकी थी, वह अमर थी और एक उपहार के रूप में थी, इसलिए उसकी देखभाल की आवश्यकता थी। अहुरा माज़दा ने लोगों को वह सब कुछ प्रदान किया जिसकी उन्हें आवश्यकता थी और बदले में वह उनसे केवल एक चीज़ चाहते थे : कि वे उनकी सलाह सुनकर और उनके द्वारा समर्थित मूल्यों की रक्षा करके अपनी आत्माओं की देखभाल करें। मानव अस्तित्व का अर्थ केवल एक चुनाव करना है - इस उपहार का सम्मान करना या फिर , स्वार्थी होकर , जानबूझकर अंगरा मैन्यु और उसके सुंदर लेकिन झूठे वादों के साथ जुड़ कर, उस उपहार को अस्वीकार करना।

मनुष्यों को यह स्वतंत्र इच्छा दी गई थी। प्रत्येक व्यक्ति को यह ख़ुद चुनना था कि उसे किस मार्ग पर चलना है और कैसे जीवन जीना है। लोगों को सही चुनाव करने में सहायता करने के साथ-साथ उन्हें अंधेरे ताकतों से बचाने के लिए, अहुरा माज़दा ने देवताओं के शेष देवालयों का निर्माण किया । सबसे लोकप्रिय देवता थे:

  • मिथ्रा - उगते सूरज, वाचाओं और अनुबंधों के देवता
  • ह्वार क्षता - पूर्ण सूर्य के देवता
  • अर्दवी सुरा अनाहिता - उर्वरता, स्वास्थ्य, जल, ज्ञान और कभी-कभी युद्ध की देवी
  • राष्णु - एक देवदूत; मृतकों का धर्मी न्यायाधीश
  • वेरेथ्रग्ना - योद्धा देवता जो बुराई के खिलाफ लड़ता है
  • वायु - हवा के देवता जो बुरी आत्माओं को भगाता है
  • तिरी और तिष्ट्र्य - कृषि और वर्षा के देवता
  • अतर - अग्नि के दिव्य तत्व के देवता; अग्नि का मानवीकरण
  • हाओमा - फसल, स्वास्थ्य, शक्ति, जीवन शक्ति के देवता; उसी नाम के पौधे का मानवीकरण जिसके रस से ज्ञान प्राप्त होता है

अनुष्ठान चार तत्वों पर केंद्रित थे जो अग्नि से शुरू हो कर (जिसे बाहरी वेदी पर जलाया जाता था) और जल (जिसे जीवन देने वाले तत्व के रूप में सम्मानित किया जाता था) के साथ समाप्त होते थे । यह हवा की उपस्थिति में और पृथ्वी पर खड़े होकर किए जाते थे। चार मुख्य बिंदुओं को भी स्वीकार किया गया। प्रारंभिक फ़ारसी धर्म में कोई मंदिर नहीं थे, जैसे बाद में पारसी धर्म में भी कोई नहीं था क्योंकि यह माना जाता था कि देवता हर जगह और सर्वव्यापी थे और कोई भी इमारत उन्हें समाहित नहीं कर सकती थी या न ही ऐसा होना चाहिए।

अग्नि ईश्वरत्व के प्रतीक के रूप में आस्था का केंद्र थी - भगवान अतर की वास्तविक उपस्थिति का रूप! लेकिन पृथ्वी, वायु और जल को भी सर्वोच्च देवता के द्वारा पवित्र उत्सर्जित मान कर गहराई से उनहें सम्मानित किया गया था। हालाँकि यूनानियों ने दावा किया कि फारसियों ने आग और तत्वों की पूजा की, लेकिन यह सच नहीं है। वे असल में उस दिव्य शक्ति की पूजा करते थे जिसने इन तत्वों का निर्माण किया था।

ज़ोरोस्टर

प्राचीन फ़ारसी धर्म एक मौखिक परंपरा थी - इसका कोई लिखित शास्त्र नहीं था । इसलिए वर्तमान समय में इसके बारे में जो कुछ भी जाना गया है वह लगभग 1500-1000 ईसा पूर्व के बीच पैगंबर ज़ोरोस्टर (जिसे जरथुस्त्र भी कहा जाता है) के रहस्योद्घाटन के बाद लिखे गए कार्यों से आया है। ऐसा लगता है कि कई देवताओं की पूजा तो पूर्वजों की पूजा तक फैली हुई थी ।एक पुजारी वर्ग (जिसे बाद में मागी के रूप में जाना गया) अनुष्ठानों का संचालन करता था और जो भी पवित्र ग्रंथ आवश्यक थे , उनका पाठ करता था। हालाँकि कोई मंदिर नहीं था, लेकिन एक धार्मिक नौकरशाही और पदानुक्रम था जिसमें एक मुख्य पुजारी और छोटे पुजारी थे जिनके पास लोग प्रार्थना और उपचार के बदले में चढ़ावा लाते थे।

पुजारी वर्ग फारसी सामाजिक व्यवस्था में सबसे ऊंचे वर्ग में से एक था और इतना धनी था कि वह काफ़ी बढ़े ऋण दे सकता था , जिस पर उसे ब्याज मिलता था। इसमें कोई संदेह नहीं है कि मेसोपोटामिया और मिस्र की तरह , सुरक्षा के लिए पहने जाने वाले विभिन्न देवताओं या संस्थाओं की मूर्तियों और ताबीजों का भी बाजार था। इसलिए, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि जब पहली बार धार्मिक सुधार का सुझाव दिया गया, तो पादरी वर्ग ने इसे स्वीकार नहीं किया था।

Headdress Detail, Rock-Cut Tombs of Qizqapan
हेडड्रेस विवरण, क़िज़क़ापान की चट्टान से काटी गई कब्रें
Osama Shukir Muhammed Amin (Copyright)

ज़ोरोस्टर के जीवन के बारे में बहुत कम जानकारी है। कहा जाता है कि उनका जन्म पूर्वी फारस में कुलीन फ़ारसी माता-पिता - पौरुसास्पा और दुगदोवा से हुआ था और उनके चार भाई थे। वह पुजारी वर्ग के सदस्य थे और संभवतः उन्होंने अपनी पढ़ाई बहुत कम उम्र में ही शुरू कर दी थी। 30 वर्ष की आयु में, उन्हें प्रकाश के रूप में सर्वोच्च देवता से एक रहस्योद्घाटन प्राप्त हुआ। यह एक नदी के तट पर प्रकट हुआ और उसने खुद को वोहु मनाह बताया , जो अच्छे विचार, अच्छे शब्द, अच्छे कर्मों का अवतार है और आमतौर पर जिसका अनुवाद "अच्छे उद्देश्य" के रूप में किया जाता है।

वोहु मनाह एकमात्र सच्चे भगवान, अहुरा मज़्दा का प्रत्यक्ष प्रतिनिधि था, जिसने ज़ोरोस्टर को बताया कि जादूगरों द्वारा अभ्यास किए जाने वाले धर्म की पहले की समझ गलत थी। केवल एक ही भगवान था, अहुरा मज़्दा, और ज़ोरोस्टर उसका पैगंबर होगा।

विश्तास्पा का धर्मांतरण प्रारंभिक बहुदेववादी विश्वास की तुलना में एकेश्वरवादी पारसी विश्वास की स्वीकृति के उदय को दर्शाता है।

ज़ोरोस्टर ने इस रहस्योद्घाटन का प्रचार करना शुरू किया लेकिन उसे अस्वीकार कर दिया गया और सताया गया। पादरी वर्ग का एक संप्रदाय, जिसे करपन के नाम से जाना जाता था, विशेष रूप से शत्रुतापूर्ण था, जैसा कि एक अन्य समूह कावी , जो कि एक कम स्पष्ट रूप से परिभाषित समूह था।ये कुलीन पुरोहित वर्ग के सदस्य थे जिन्हें नई शिक्षा में अपनी स्थिति के लिए खतरा नजर आया और उनहोंनें इसे तुरंत चुप कराने की कोशिश की। ज़ोरोस्टर को अपने घर से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा, लेकिन उन्होंने अपने धर्म का त्याग नहीं किया।

वह राजा विष्टस्पा के दरबार में गया, जहाँ उसने विष्टस्पा के दरबार के पुजारियों के साथ परम सत्य और देवत्व की प्रकृति पर बहस की। हालाँकि, लेखों के अनुसार, उसने अपने दावों को साबित कर दिया, लेकिन विष्टस्पा इससे खुश नहीं था और उसने ज़ोरोस्टर को कैद करवा दिया। जेल में रहते हुए, ज़ोरोस्टर ने विष्टस्पा के पसंदीदा घोड़े ,जो लकवाग्रस्त हो गया था, को ठीक किया। राजा ने न केवल उसे रिहा कर दिया , बल्कि ज़ोरोस्टर उसका पहला उल्लेखनीय धर्मांतरित व्यक्ति बन गया। विष्टस्पा का धर्मांतरण प्रारंभिक बहुदेववादी विश्वास पर एकेश्वरवादी पारसी धर्म की स्वीकृति के उदय को दर्शाता है।

यह नया धर्म पाँच सिद्धांतों पर आधारित था:

  • सर्वोच्च देवता अहुरा मज़्दा हैं
  • अहुरा मज़्दा सर्व-भले हैं
  • उनका शाश्वत प्रतिद्वंद्वी, अंगरा मैन्यु सर्व-बुरा है
  • अच्छाई अच्छे विचारों, अच्छे शब्दों और अच्छे कर्मों के माध्यम से स्पष्ट होती है
  • प्रत्येक व्यक्ति के पास अच्छाई और बुराई के बीच चयन करने की स्वतंत्र इच्छा होती है

मिथ्रा और अनाहिता जैसे पहले के देवताओं को अहुरा मज़्दा से आध्यात्मिक उत्सर्जन के लिए पदावनत किया गया और साथ ही में अन्य संस्थाओं को भी फिर से नियुक्त किया गया। चिनवत ब्रिज की अवधारणा पहले के विश्वास से ली गई थी जहाँ नए मृतकों को नाव से एक अंधेरी नदी पार करनी होती थी, और इस प्रक्रिया को विभाजक को पार करना कहा जाता था। पारसी धर्म में, यह एक ऐसा पुल था जो दोषी लोगों के लिए संकरा और उस्तरे की धार की तरह तीखे हो जाता है जबकि न्यायसंगत आत्माओं के लिए यह खुल कर चौड़ा और पार करना आसान हो जाता है। जरथुस्त्र ने दो कुत्तों को भी दृष्टि में रखा जो पुल की रक्षा करते हैं । वह दोषी लोगों पर गुर्राते हुए न्यायसंगत लोगों का स्वागत करते है और साथ ही देवदूत सुरोश का भी ,जो आत्माओं का मार्गदर्शक और संरक्षक है और पुल पार करते समय उनकी रक्षा करता है; और डेना, पवित्र युवती, जो विभाजन पर पहुंचने पर मृतकों की आत्माओं को सांत्वना देती है।

ज़ोरोस्टर के अनुसार, दुनिया दयालु और दुष्ट आत्माओं - अहुरा और दैव - से जीवंत है और सकारात्मक प्रतिक्रिया देने के समय साथ ही साथ नकारात्मक प्रभावों से अपना बचाव भी करना चाहिए। अंत में, झूठ पर आधारित जीवन जीने के बजाय सच्चाई का जीवन जीना व्यक्ति की अपनी ज़िम्मेदारी है और अगर कोई अपने निर्माता का सम्मान करता है, तो वह एक पूर्ण, उत्पादक जीवन जी सकता है और मृत्यु के बाद स्वर्ग का आनंद ले सकता है।

हालांकि, अगर कोई इसमें विफल हो जाता है, तो भी झूठ के घर में उसकी सज़ा हमेशा के लिए नहीं होती। एक मसीहा आएगा - साओश्यंत ("जो लाभ लाता है") जो फ्राशोकेरेटी (समय का अंत) लाएगा । वो सभी आत्माओं को अहुरा माज़दा के साथ फिर से मिलाएगा और सभी को माफ़ कर दिया जाएगा। अंगरा मैन्यु को पराजित किया जाएगा और हर कोई अपने निर्माता की संगति में आनंद से रहेगा और उन लोगों के साथ भी , जिन्हें वह समझता था कि मृत्यु के कारण हमेशा के लिए खो चुका है।

ज़ोरोस्टर ने 77 वर्ष की आयु पर अपनी मृत्यु तक इस नई समझ का प्रचार जारी रखा। प्रारंभिक विवरणों के अनुसार, अपने ईश्वर के प्रति समर्पित जीवन जीने के बाद वृद्धावस्था में उनकी मृत्यु हो गई, जबकि बाद के कार्यों में दावा किया गया है कि पुराने धर्म के एक भक्त ने उनकी हत्या कर दी थी।

अचमेनिद साम्राज्य और ज़ोरवानवाद

550 ईसा पूर्व में, साइरस द ग्रेट (शासनकाल 550-530 ईसा पूर्व) ने विजयों की एक श्रृंखला के बाद अचमेनिद साम्राज्य की स्थापना की और अपनी सफलता के लिए अहुरा मज़्दा को धन्यवाद दिया। चूँकि उस समय पारसी धर्म लंबे समय से उस क्षेत्र में स्थापित था, इसलिए शुरुआती विद्वानों ने स्वचालित रूप से मान लिया कि साइरस एक पारसी थे, लेकिन यह ज़रूरी नहीं है। आधुनिक विद्वानों ने इस राय को संशोधित किया है क्योंकि अहुरा मज़्दा को स्पष्ट रूप से पारसी धर्म के उदय से पहले सर्वोच्च देवता के रूप में कई अन्य लोगों के बीच बुलाया गया था, उसी तरह जैसे मिस्र के फिरौन रामेसेस द्वितीय (महान, शासन काल 1279-1213 ईसा पूर्व) ने अमुन को देवताओं के राजा के रूप में बुलाया था। इसलिए, साइरस द्वारा अहुरा मज़्दा का आह्वान करने का मतलब यह नहीं है कि वह एक पारसी थे, भले ही ऐसा होना मुमकिन हो सकता है।

Cyrus the Great
साइरस महान
Siamax (CC BY-SA)

यही तर्क अचमेनिद साम्राज्य के बाद के शासकों जैसे कि डेरियस I (महान, 522-486 ईसा पूर्व) और ज़ेरेक्स I (486-465 ईसा पूर्व) पर भी लागू किया गया है, हालांकि, इनके और बाद के राजाओं के मामले में काफ़ी अधिक संभावना है कि वे ज़्यादातर जोरोस्ट्रियन थे। अहुरा मज़्दा की प्रशंसा कलाकृतियों, आदेशों और समर्पणों में दिखाई देती है, खास तौर पर डेरियस I के महान शहर पर्सेपोलिस और प्रसिद्ध बेहिस्टन शिलालेख में, लेकिन, धार्मिक सहिष्णुता की अचमेनिद साम्राज्य की नीति को ध्यान में रखते हुए, शाही घराने का विश्वास जनता पर नहीं थोपा गया था। अचमेनिद साम्राज्य में हर धर्म का स्वागत था और लोगों को अपनी इच्छानुसार विश्वास करने और पूजा करने की अनुमति थी।

स्वतंत्र धार्मिक विचार और अभिव्यक्ति के प्रोत्साहन ने आचमेनिड काल के अंत में ज़ोरवानवाद के तथाकथित 'विधर्म' को जन्म दिया। ज़ोरवानवाद सीधे ज़ोरोस्ट्रियनवाद से विकसित हुआ लेकिन उससे काफी अलग था। ज़ोरवानवाद में, सर्वोच्च देवता समय (ज़ोरवन) था जिसने अहुरा मज़्दा और अंगरा मैन्यु के जुड़वां देवताओं का निर्माण किया था। अहुरा मज़्दा अभी भी निर्माता था लेकिन अब वह एक अनिर्मित, सर्वशक्तिमान प्राणी नहीं था। इस प्रणाली में, अहुरा मज़्दा और अंगरा मैन्यु शक्ति में पूरी तरह से बराबर थे जो एक ब्रह्मांडीय संघर्ष में बंधे हुए थे और अंततः जीत अहुरा मज़्दा की ही थी।

ज़ोरवानवाद और सस्सानियन

ज़ोरवानवाद पार्थियनों के अधीन और अधिक विकसित हुआ , जिनकी विकेंद्रीकृत सरकार ने धार्मिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रोत्साहित किया; लेकिन पूरी तरह से साकार हुआ ,सस्सानियन साम्राज्य के तहत । सस्सानियों ने ज़ोरोस्ट्रियनवाद को राज्य धर्म बनाया लेकिन अन्य धर्मों की गतिविधियों को प्रतिबंधित नहीं किया। ऐसा लगता है कि उच्च वर्ग के कई लोग वास्तव में ज़ोर्वानाइट थे, लेकिन चूंकि दोनों प्रणालियाँ एक-दूसरे से बहुत मिलती-जुलती थीं, इसलिए निश्चित रूप से कुछ कहना मुश्किल है।

सासानी राजाओं ने स्पष्ट रूप से पारसी धर्म का समर्थन किया और वे ज़ोरोस्ट्रियन की शिक्षाओं को लिखित रूप में प्रस्तुत करने वाले पहले व्यक्ति थे।

ज़ोरवानवाद के साथ उच्च वर्ग का जुड़ाव मुख्य रूप से जीवन के भाग्यवादी दृष्टिकोण की ओर उनकी प्रवृत्ति होने के कारण उपजा। यह जोरोस्ट्रियनवाद में स्वतंत्र इच्छा की स्थापित श्रेष्ठता के विपरीत है - जो जीवन के सभी पहलुओं में समय की सर्वोच्चता को मान्यता देता है तथा मनुष्य समय के सामने कितना शक्तिहीन है। क्यू सेरा, सेरा - "जो होना चाहिए, वह होगा" की अवधारणा - ज़ोरवानवादी दृष्टिकोण को सबसे अच्छी तरह से व्यक्त करती है जिसे बाद में फ़ारसी कला और कविता में विकसित किया गया।

ज़ोरवानवाद का राजतंत्र या सामान्य रूप से सासानी संस्कृति पर चाहे जो भी प्रभाव रहा हो, सासानी राजाओं ने स्पष्ट रूप से पारसी धर्म का समर्थन किया और ज़ोरोस्टर की शिक्षाओं को लिखित रूप में प्रस्तुत करने वाले वे पहले व्यक्ति थे। पहले, धर्मग्रंथ की सामग्री जिसे अब अवेस्ता के रूप में जाना जाता है, को याद किया जाता था और मौखिक रूप से प्रसारित किया जाता था। पहले सासानी राजा, अर्दाशिर I (शासनकाल 224-240 ई.) ने लिखित धर्मग्रंथ की नीति का समर्थन किया, जैसा कि उनके बेटे और उत्तराधिकारी शापुर I (शासनकाल 240-270 ई.) ने किया था, हालांकि यह कार्य शापुर II (309-379 ई.) के शासनकाल तक पूरा नहीं हुआ और कोसराऊ I (531-579 ई.) के शासनकाल तक अंतिम रूप में पूरी तरह से साकार नहीं हुआ था। कोसराऊ I के शासनकाल के अंत तक, अवेस्ता और पारसी विश्वास, अभ्यास और मूल्यों से संबंधित अन्य कार्य अधिकांश भाग के लिए लिखित रूप में संहिताबद्ध हो गए थे।

ईसाई धर्म और इस्लाम

हालाँकि ससैनियन के तहत ईसाई धर्म को सहन किया गया और प्रोत्साहित भी किया गया, लेकिन ईसाइयों ने इसका एहसान नहीं चुकाया । उन्होंने पारसी धर्म को एक झूठे भगवान की पूजा करने वाली एक बुरी प्रणाली के रूप में देखा। ससैनियन काल के अंत के क़रीब में, ईसाइयों ने पारसी अग्नि मंदिरों में जलने वाली आग बुझा दी - वे वेदियाँ जिन पर भगवान की लौ हमेशा जलती थी ।पारसी धर्म के विश्वास के खिलाफ प्रचार किया और लोगों से ईसाई धर्म के "सच्चे विश्वास" को स्वीकार करने का आग्रह किया।

इस समय तक (4वीं शताब्दी ई.) पारसी धर्म यहूदी धर्म के माध्यम से ईसाई धर्म के विकास को इन अवधारणाओं के माध्यम से पहले ही प्रभावित कर चुका था - एक सर्वोच्च ईश्वर , मानव की स्वतंत्र इच्छा का महत्व और मोक्ष के लिए व्यक्तिगत जिम्मेदारी, मृत्यु के बाद न्याय, स्वर्ग और नरक, मसीहा और अंत समय, और एक अलौकिक विरोधी जिसका अनुयायी को अवश्य विरोध करना चाहिए। ये प्रभाव बाद में ईसाई धर्म और यहूदी धर्म के माध्यम से इस्लाम के विकास में सहायक हुए लेकिन दोनों ही ने पारसी प्रेरणा और उदाहरण को स्वीकार करने की बजाय इसे बदनाम और शैतानी क़रार कर दिया गया।

651 ई. में फारस पर मुस्लिम विजय के बाद, मुसलमानों ने अग्नि मंदिरों को नष्ट कर दिया या उनकी जगह मस्जिदें बना दीं, पुस्तकालयों को जला दिया। जो पारसी अपना धर्म परिवर्तन करने के लिए तैयार न थे , उन्हें सताया गया या मार दिया गया। कई पारसी अपनी सुरक्षा के लिए भारत में भाग कर चले गए, जहाँ आज भी एक बड़ा पारसी समुदाय है, जबकि अन्य या तो अपने विश्वास के लिए मर गए या उन्होंने धर्म परिवर्तन कर लिया। आज पारसी समुदाय कई अलग-अलग देशों में फल-फूल रहे हैं, जो दुनिया के सबसे पुराने और निश्चित रूप से सबसे मूल धार्मिक विश्वासों में से एक विश्वास के मूल्यों को संरक्षित कर रहे हैं।

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अनुवादक के बारे में

Ruby Anand
मैंने विज्ञान में बी.एस .सी. और सस्टेनेबल डिवैलपमैंट में एम.एस.सी. की है| मुझे यह बहुत दिलचस्प लगता है कि बीते हुए समय ने किस तरह इस दुनिया को , जिसमें आज हम रहते है, को आकार दिया है| इतिहास पर जानकारी के लिए worldhistory.org जानकारी का सबसे अच्छा स्तोत्र हैा

लेखक के बारे में

Joshua J. Mark
एक स्वतंत्र लेखक और मैरिस्ट कॉलेज, न्यूयॉर्क में दर्शनशास्त्र के पूर्व अंशकालिक प्रोफेसर, जोशुआ जे मार्क ग्रीस और जर्मनी में रह चुके हैं औरउन्होंने मिस्र की यात्रा की है। उन्होंने कॉलेज स्तर पर इतिहास, लेखन, साहित्य और दर्शनशास्त्र पढ़ाया है।

इस काम का हवाला दें

एपीए स्टाइल

Mark, J. J. (2019, December 11). प्राचीन फ़ारसी धर्म [Ancient Persian Religion]. (R. Anand, अनुवादक). World History Encyclopedia. से लिया गया https://www.worldhistory.org/trans/hi/1-18650/

शिकागो स्टाइल

Mark, Joshua J.. "प्राचीन फ़ारसी धर्म." द्वारा अनुवादित Ruby Anand. World History Encyclopedia. पिछली बार संशोधित December 11, 2019. https://www.worldhistory.org/trans/hi/1-18650/.

एमएलए स्टाइल

Mark, Joshua J.. "प्राचीन फ़ारसी धर्म." द्वारा अनुवादित Ruby Anand. World History Encyclopedia. World History Encyclopedia, 11 Dec 2019. वेब. 04 Oct 2024.